बाराबंकी जहांगीराबाद (कटरा) में चल रही भागवत कथा में कथावाचक पूज्य श्री चन्द्रशेखर जी महाराज ने कहा की हमारे जीवन में माता-पिता और गुरु के बाद मित्र को स्थान दिया गया कहा जाता है विपत्ति रूपी कसौटी पर कसा जाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है संस्कृत में कहावत है कि राज दरबारेश्च श्मशाने यो तिस्थिट शा बंधवा. अर्थात राज दरबार और श्मशान घाट में साथ रहने वाला है सच्चा मित्र कहलाता है यहां राज दरबार सुख का है और शमशान दुख का प्रतीक है अतः सुख दुख में साथ रहने वाला ही व्यक्ति सच्चा मित्र होता है सच्चा मित्र स्वास्थ्य से उठकर मित्र को बुराई की राह चलने से व गिरते हुए मित्र का हाथ थाम कर उसे गिरने से बचाता है वह अपने मित्र को ना तो कभी भटकने देता है और ना ही सही रास्ता भूलने देता है सदैव उसे सही रास्ते पर चलने की कोशिश करता है शंकट के समय कभी साथ नहीं छोड़ना सच्चा मित्र अपना विवेक सदा जगाए रखता है मित्रता तो दुनिया का ऐसा धन होता है जिसकी तुलना दुनिया की किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती है सच्ची मित्रता को दर्शाते हुए बहुत सारे प्रसंग सुनने को मिलते हैं जैसे कृष्णा और सुदामा की मित्रता अर्जुन और कृष्ण की मित्रता विभीषण और सुग्रीव की राम से मित्रता सरल शब्दों में कहीं तो भटकाने और मौज मस्ती के साथ देने वाले मित्र कदम-कदम पर मिल जाते हैं परंतु सही राह दिखाने वाले मित्र बहुत कम मिलते हैं व्यक्ति को अपने मित्रों का चुनाव सदैव सोच समझकर करना चाहिए सच्चे मित्र का उपहास कर या किसी भी कारण से उसे खोना नहीं चाहिए इसके विपरीत अपना काम निकालने वाले दोस्तों से दूर ही रहना चाहिए यह बुरे समय पर आपकी मदद के लिए कभी सामने नहीं आएंगे और उल्टा आपको समय-समय पर समस्या में डाल देंगे
इस अवसर पर मथुरा प्रसाद.खरगी लाल.रामप्रताप गुरुशरन ठेकेदार.विश्वनाथ एडवोकेट.प्रधान उमेश.कुमार यादव तेजीराम आदि सैकड़ों भक्त मौजूद रहे