संवाददाता मोहम्मद इसराईल शाह आदर्श उजाला (गैड़ास बुजुर्ग)
शनिवार को गुरुद्वारा सिंह सभा उतरौला में बैसाखी के पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।सुबह से ही गुरु द्वारा सिंह सभा में शब्द कीर्तन के बाद गुरु के अटूट लंगर का आयोजन हुआ, जिसमें सिख समाज के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गुरुद्वारा के प्रधान दलबीर सिंह खुराना ने बताया कि विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा के होने के कारण इस माह को वैशाख कहते हैं, कई जगह पर इसे बैसाखी भी कहा जाता है पंजाबी और सिख समुदाय के बीच बैसाखी का बहुत महत्व है। बैसाखी पर्व की कथा गुरुद्वारा के मुख्य ग्रंथी बलवान सिंह ने बताया कि जब मुगलकालीन के क्रूर शासक औरंगजेब ने मानवता पर बहुत जुल्म किए थे खास कर सिख समुदाय पर क्रूरता करने की औरंगजेब ने सारी ही सीमाएं पार कर दी थी, अत्याचार की प्रकाष्ठा तब हो गई जब औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान श्री गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद कर दिया गया। औरंगजेब के इस अन्याय को देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयानियों को संगठित करके खालसा पंथ की स्थापना की,इस पंथ का लक्ष्य हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सबसे ऊपर रखा मानवता के अलावा खालसा पंथ में सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए भी काम किया। इस तरह 13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया।इस दिन को तब नए साल की तरह है मनाया गया इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा।इस अवसर पर उतरौला नगर के सम्मानित बंधु ज्ञानी बलवान सिंह, रघुबीर सिंह, दलवीर सिंह खुराना, प्रीतपाल सिंह सलूजा, गुरविंदर सिंह, त्रिलोचन सिंह, प्रताप सिंह,परमजीत सिंह,राजेश खुराना, रिंपल पहुजा,भूपेंद्र सिंह, मनप्रीत सिंह, मनविंदर सिंह, सुखविंदर कौर, सिमरनजीत कौर, नरिंदर कौर सहित तमाम सिख समुदाय के लोग उपस्थित रहे।