रंजीतपुर में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ चल रहा आयोजन
बलरामपुर। बलरामपुर के ग्राम रंजीतपुर मे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, कथावाचक आचार्य ज्ञान देवधर वेदांती की ओर से भगवान नारायण के सभी जन्मों के अवतार की कथा अपने मुखारविंद से वर्णित करते हुए भगवान कृष्ण के जन्म प्रसंग का बड़ा सुंदर वर्णन किया गया। भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे। कथा में जैसे ही भगवान का जन्म हुआ पूरा स्थल ‘नंद के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की’ के जयकारों से गूंज उठा। बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने फल फूल मिष्ठान आदि प्रसाद वितरित करते हुए मंगल गीत गाया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा श्रवण करने आते है। आचार्य ज्ञानदेव धर ने कथा सुनाते हुए कहा कि जब-जब धरती पर आसुरी शक्ति हावी हुई परमात्मा धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की। आगे उन्होंने कहा कि मथुरा में राजा कंस के अत्याचारों से व्यथित होकर धरती की करुण पुकार सुनकर नारायण ने कृष्ण रूप में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में जन्म लिया और धर्म और प्रजा की रक्षा कर कंस का अंत किया। श्री कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाते भागवत के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन किया। कथावाचक ने बताया कि ईश्वर के 24 अवतारों में से प्रमुख भगवान श्री राम के जीवन चरित्र से मर्यादा और श्री कृष्ण चरित्र से ज्ञान योग वा भक्ति की प्रेरणा लेकर जीवन को धन्य करना चाहिए। जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य मिलना बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह शुभ अवसर मिले इसका सदुपयोग करना चाहिए। कथा सुनते हुए उसी के अनुसार कार्य करें। कथा का सुनना तभी सार्थक होगा जब उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर परामर्श का काम करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार व पृथ्वी को दैत्य शक्तियों से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र में हुआ। भगवान कृष्ण ने संसार को अंधेरे से प्रकाश में लाने के लिए जन्म लिया और अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञानरूपी प्रकाश से दूर किया।