कथा चतुर्थ दिवस में कथा व्यास उत्तम जी महाराज ने कहा की इंसान की पहचान सिर्फ उसके कार्यों को देखकर होती है उसके पद पैसा शक्ति रूप रंग पहनावा देखकर नहीं होती है।अच्छी लच्छेदार बातें और उपदेश तो बुरे लोग भी कर सकते हैं जैसा कि आजकल बहुतायत हो रहा है। कुछ लोग सामने कुछ और पीछे कुछ और होते हैं।अच्छे कर्म वहीं करता है जो खुद को खुदा नही उसका बंदा उसकी संतान मानकर इन्सानियत की राह पर ईश्वर को हाजिर नाजिर मानकर मानवीय कर्म कर उसके बताए मार्ग पर चलता है। अगर दूसरों के दुख को देखकर आपका हृदय द्रवित होता है तो फिर पक्का मान लो कि ईश्वर ने आपको इन्सान बनाकर कोई गलती नहीं की है बल्कि आपको इंसान बनाने का उसका उद्देश्य पूरा हो गया है। तुलसी बाबा ने भी लिखा है.जे न मित्र दुख होय दुखारी तिन्हहि विलोकत पातक भारी.आगे कहा गया है कि येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः। ते मृत्युलोके भू भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति जिसके पास विद्या, तप ज्ञान शील गुण और धर्म में से कुछ भी नहीं है वह मनुष्य होते हुए भी मृग के समान है। इस अवसर पर यज्ञाचार्य विनोदाचार्य एवम मुख्य यजमान सपत्नी मैकूलला यादव. शिवकुमार वर्मा. राकेश विजेंद्र हरिश्चंद्र राजेश कुमार यादव सहित तमाम भक्त उपस्थित रहे