नगर के ज्वाला महारानी मंदिर में पूरी होती है श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं।

 

आदर्श उजाला संवाददाता–मोहम्मद इसराईल शाह (गैड़ास बुजुर्ग)

उतरौला/बलरामपुर
नगर क्षेत्र के हृदय स्थल में स्थित ज्वाला महारानी मंदिर कई दशकों से स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। वर्ष के बारहों महीने सोमवार व शुक्रवार को मनोकामनाएं पूरी होने पर लोग कड़ाह प्रसाद का आयोजन करते हैं। शारदीय व वासंतिक नवरात्र में यहां नारियल-चुनरी चढ़ाने के साथ पूजन-अर्चन का क्रम चलता रहता है। राजस्थानी शैली में निर्मित सुनहरे रंग का मंदिर आकर्षक है।

यह है इतिहास
भगवान शिव का अपने पिता द्वारा अपमान किए जाने से आहत देवी सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जान दे दी थी। व्यथित होकर भगवान शिव ने देवी का शव कुंड से उठाकर तीनों लोकों में तांडव नृत्य शुरू कर दिया था। तांडव नृत्य से सृष्टि के विनाश की आशंका के भगवान विष्णु ने सती मोह समाप्त करने के लिए अपने चक्र से देवी सती के शरीर का छेदन करना शुरू कर दिया। मान्यता है कि सती के अंगों से निकली ज्वाला इसी स्थान पर गिर कर पाताल लोक चली गई। यहां गहराई में एक गड्ढा बन गया। पहले लोग इसी गड्ढे पर नारियल-चुनरी, दीप चढ़ाते थे। अब गड्ढे पर चबूतरा बना कर इसे ढक दिया गया है। मंदिर के भीतर देवी की प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर के पुजारी पंडित चतुरेश शास्त्री बताते हैं कि देवी जी के ज्वाला रूपी स्वरूप की पूजा इस स्थान पर वर्षों से चली आ रही है। आदि शक्ति श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यही कारण है कि यहां पूरे साल लोग दर्शन करने व देवी का आशीर्वाद पाने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

ये हैं व्यवस्थाएं
शुभम् कसौधन दद्दू मुख्य सेवादार मां ज्वाला महारानी मंदिर पर श्रद्धालुओं के लिए पेयजल व दर्शन की पूरी व्यवस्था है। नारियल-चुनरी या अन्य चढ़ावे के सामानों की दूकानें पास में ही स्थित है।
महिला-पुरुषों के कतार के लिए अलग-अलग व्यवस्था है।
व्यवस्थापक अमरचंद गुप्ता के अनुसार कराह प्रसाद करने के श्रद्धालुओ को कराह उपलब्ध है व श्रद्धालुओ के ठहरने के लिए धर्मशाला भी उपलब्ध है

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