बाराबंकी। श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस में पूरे ब्राम्हण महुलारा गुरु आश्रम बड़ी छावनी अयोध्या से आये कथा व्यास पंडित दुर्गेश तिवारी जी

रामसनेहीघाट सतीश कुमार

बाराबंकी। श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस में पूरे ब्राम्हण महुलारा गुरु आश्रम बड़ी छावनी अयोध्या से आये कथा व्यास पंडित दुर्गेश तिवारी जी महाराज ने शिव और सती चरित्र की कथा का वर्णन किया।
तहसील क्षेत्र के दुल्हदेपुर गांव में द्वारिका प्रसाद के आवास पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास ने कहा कि मां सती यदि श्रीराम चरित्र पर संशय करती हैं तो भी हमें भगवान के किसी चरित्र पर संशय नहीं करना चाहिए। क्योंकि माता सती शिव की पराशक्ति है ,वह तो भगवान के वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराना चाहती हैं। देह त्याग के द्वारा सती जी सांसारिक मोह भंग की लीला करती हैं, कथा व्यास ने कथा व्यास श्री तिवारी जी महाराज ने कहा कि सती के यज् में कूदकर आत्मदाह करने के पश्चात भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए उधर माता सती ने हिमालय और मैना रानी के यहां पर पार्वती के रूप में जन्म लिया । उस समय तारकासुर नाम के एक असुर का बहुत ही आतंक था जिससे देवता गण उससे बहुत ही भयभीत रहते थे।तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव की संतान ही कर सकती है, उस समय भी भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई। भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया लेकिन वह भस्म हो गए। देवताओं की विनती पर शिव जी पार्वती जी से विवाह करने के लिए राजी हुए विवाह की बात तय होने के बाद भगवान शिव जी बारात की तैयारी हुई, सांसारिक व्यक्ति बारात में जाने से पहले श्रृंगार करता है सभी प्रकार के द्वयो को अपने शरीर पर लगाता है जिससे की ऐसा सुंदर वर लगे जैसा ओर कोई ना परन्तु भगवान् शिव शमशान की भस्म का धारण करके सुंदर दिखना चाहते है तथा सांसारिक व्यक्तियों को ये संदेश देना चाहते है की दुनिया के कितने भी द्वय लगाए वह एक दिन अवश्य ही मित जाएंगे परन्तु चिता की भस्म हि अंतिम सत्य है रखेंगे। यदि इस बात को याद रखें तो जीवन सत्य जायेगा, तथा संसार मे सत्य शिवम् सुंदरम कहलाएँगे।
कथा व्यास पंडित दुर्गेश तिवारी जी महाराज ने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि शिव जी की बारात में देवता, दानव, गण, जानवर सभी लोग शामिल हुए । भगवान शिव की बारात में भूत पिशाच भी पहुंचे। ऐसी बारात को देखकर पार्वती जी की मां बहुत डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर को अपनी पुत्री को नहीं सौंप सकती हैं। तब देवताओं ने भगवान शिव को परंपरा के अनुसार तैयार किया, सुंदर तरीके से श्रृंगार किया इसके बाद दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। कथा के दौरान शिवजी के विवाह का उत्सव कथा स्थल पर धूमधाम के साथ मनाया गया। इस दौरान पंडित कपिल तिवारी, अमन तिवारी, ननकाउ यादव, विमल।तिवारी सहित तमाम महिलाएं पुरुषों ने कथा श्रवण की।

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